Top 10 Hindi Shayari Collection 2015
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तेरे लिए तो हूँ मैं बस वक़्त का एक बुलबुला,
जितना जीना था जी लिया, लो अब मैं चला |
तुझे याद करता हूँ तो बढ़ जाती है तकलीफ़ें,
ऐ ज़िन्दगी तू यहीं ठहर, लो अब मैं चला |
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दस्तूर के लिखें पर टिकना, मुनासिब नहीं दोस्तों..
ये अक्सर मौके कम.. और धौके ज़्यादा देता है।
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तुम बताओ तो मुझे किस बात की सजा देते हो।
मंदिर में आरती और महफ़िल में शमां कहते हो।
मेरी किस्मत में भी क्या है लोगो जरा देख लो,
तुम या तो मुझे बुझा देते हो या फिर जला देते हो
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अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे
वो वक़्त भी ख़ुदा न दिखाए कभी मुझे
उन की नदामतों पे हो शर्मिंदगी मुझे
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हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँ
दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे ||
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वो बेवफा हमारा इम्तेहा क्या लेगी…
मिलेगी नज़रो से नज़रे तो अपनी नज़रे ज़ुका लेगी…
उसे मेरी कबर पर दीया मत जलाने देना…
वो नादान है यारो… अपना हाथ जला लेगी.
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मैं रो के आह करूँगा जहाँ रहे न रहे
ज़मीं रहे न रहे आसमाँ रहे न रहे
रहे वो जान-ए-जहाँ ये जहाँ रहे न रहे
मकीं की ख़ैर हो या रब मकाँ रहे न रहे
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अपने घर की इज्ज़त सब को प्यारी लगती है
गैरों की बहन बेटी क्यों अबला नारी लगती है,
दुसरो की बहन बेटी को छेड़ने में बड़ा मजा आता है
खुद की बहन बेटी को कोई देखे तो मिर्ची क्यों लगती है,
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छू ले आसमान ज़मीन की तलाश ना कर,
जी ले ज़िंदगी खुशी की तलाश ना कर,
तकदीर बदल जाएगी खुद ही मेरे दोस्त,
मुस्कुराना सीख ले वजह की तलाश ना कर
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उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है!
जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है!
दिल टूटकर बिखरता है इस कदर!
जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है!
जितना जीना था जी लिया, लो अब मैं चला |
तुझे याद करता हूँ तो बढ़ जाती है तकलीफ़ें,
ऐ ज़िन्दगी तू यहीं ठहर, लो अब मैं चला |
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दस्तूर के लिखें पर टिकना, मुनासिब नहीं दोस्तों..
ये अक्सर मौके कम.. और धौके ज़्यादा देता है।
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तुम बताओ तो मुझे किस बात की सजा देते हो।
मंदिर में आरती और महफ़िल में शमां कहते हो।
मेरी किस्मत में भी क्या है लोगो जरा देख लो,
तुम या तो मुझे बुझा देते हो या फिर जला देते हो
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अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे
वो वक़्त भी ख़ुदा न दिखाए कभी मुझे
उन की नदामतों पे हो शर्मिंदगी मुझे
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हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँ
दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे ||
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वो बेवफा हमारा इम्तेहा क्या लेगी…
मिलेगी नज़रो से नज़रे तो अपनी नज़रे ज़ुका लेगी…
उसे मेरी कबर पर दीया मत जलाने देना…
वो नादान है यारो… अपना हाथ जला लेगी.
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मैं रो के आह करूँगा जहाँ रहे न रहे
ज़मीं रहे न रहे आसमाँ रहे न रहे
रहे वो जान-ए-जहाँ ये जहाँ रहे न रहे
मकीं की ख़ैर हो या रब मकाँ रहे न रहे
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अपने घर की इज्ज़त सब को प्यारी लगती है
गैरों की बहन बेटी क्यों अबला नारी लगती है,
दुसरो की बहन बेटी को छेड़ने में बड़ा मजा आता है
खुद की बहन बेटी को कोई देखे तो मिर्ची क्यों लगती है,
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छू ले आसमान ज़मीन की तलाश ना कर,
जी ले ज़िंदगी खुशी की तलाश ना कर,
तकदीर बदल जाएगी खुद ही मेरे दोस्त,
मुस्कुराना सीख ले वजह की तलाश ना कर
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उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है!
जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है!
दिल टूटकर बिखरता है इस कदर!
जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है!
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