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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक ~ कुँअर बेचैन

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Kunwar Bechain ~ Google.com ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक चाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलों तक प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़कर बरसी मेरी पलकों में जो इक पीर पली मीलों तक मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक हम तुम्हारे हैं 'कुँअर' उसने कहा था इक दिन मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक

वर्ना रो पड़ोगे ~ कुँअर बेचैन

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Photo Credit : Google बंद होंठों में छुपा लो ये हँसी के फूल वर्ना रो पड़ोगे। हैं हवा के पास अनगिन आरियाँ कटखने तूफान की तैयारियाँ कर न देना आँधियों को रोकने की भूल वर्ना रो पड़ोगे। हर नदी पर अब प्रलय के खेल हैं हर लहर के ढंग भी बेमेल हैं फेंक मत देना नदी पर निज व्यथा की धूल वर्ना रो पड़ोगे। बंद होंठों में छुपा लो ये हँसी के फूल वर्ना रो पड़ोगे।