अपने लफ़्ज़ों से चुकाया है किराया इसका, दिलों के दरमियां यूँ मुफ्त में नहीं रहती, साल दर साल मै ही उम्र न देता इसको, तो ज़माने में मोहब्बत जवां नहीं रहती…
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना मैंने पलकों पे तमन्नाएँ सजा रखी हैं दिल में उम्मीद की सौ शम्मे जला रखी हैं ये हसीं शम्मे बुझाने के लिए मत आना प्यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई तुम कोई रस्म निभाने के लिए मत आना रचनाकार: - जावेद अख़्तर